तंजौर के मंदिर का क्या रहस्य है, जो अब तक कोई सुलझा नहीं पाया है?
अद्भुत, अविश्वसनीय शिव मंदिर, जिसका वैज्ञानिक भी नहीं जान सके रहस्य
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भारत में वैसे तो कई चमत्कारी व अद्भुत मंदिर हैं, लेकिन तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर कई लोगों की आस्था का केंद्र है, यहां सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, क्योंकि इसका आश्चर्य आजतक किसी को समझ नहीं आया कहा जाता है, की हम वैज्ञानिक काल में जी रहे हैं जहां असंभव को भी संभव किया जा सकता है। लेकिन इस मंदिर के चमत्कार के आगे वैज्ञनिकों नें भी अपने घुटने टेक दिए हैं तमिलनाडु के तंजौर में स्थित यह शिव मंदिर बृहदेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह प्रसिद्ध मंदिर 11वीं सदी के आरंभ में बनाया गया था, मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है,की इस विशाल मंदिर को हजारों टन ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है और इसे जोड़ने के लिए ना तो किसी ग्लू का इस्तेमाल किया गया है और ना ही सीमेंट का, फिर सोचने वाली बात है की इस मंदिर को आखिर किस चीज़ से जोड़ा गया है तो आपको बता दें की मंदिर को पजल्स सिस्टम से जोड़ा गया है।
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वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है यह मंदिर
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चोल राजा प्रथम ने 1010 ad में इस मंदिर का निर्माण कराया था। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था लेकिन तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर का नाम बदलकर बृहदेश्वर कर दिया। यह प्राचीन मंदिर चोल शासकों की कला का महान संगम है। बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का बेजोड़ नमूना है। इस भव्य मंदिर को सन1987 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया। भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर शैव धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल रहा है। यह मंदिर उनके शासनकाल की गरिमा का श्रेष्ठ उदाहरण है।
मंदिर की अद्भुत रहस्य
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इस मंदिर की सबसे ख़ास बात यह है कि इस मंदिर के गुम्बद की छाया जमीन पर पड़ती ही नहीं है, इस मंदिर के निर्माण कला की प्रमुख विशेषता यह है कि दोपहर को मंदिर के हर हिस्से की परछाई जमीन पर दिखती है लेकिन गुंबद की नहीं। दुनिया में पीसा की मीनार सहित कई ऊंची संरचनाएं टेढ़ी हो रही हैं, लेकिन यह मंदिर अभी तक सीधा बना हुआ है। लोगों की समझ से यह रहस्य आज भी परे है कि इस मंदिर में आखिर ऐसा क्या छुपा है?
मंदिर पर है 80 टन का कलश
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इस मंदिर के गुंबद को 80 टन के एक पत्थर से बनाया गया है, और उसके ऊपर एक स्वर्ण कलश रखा हुआ है। मंदिर का नाम उस समय सही प्रतीत होता है, जब कोई इस मंदिर के अंदर जाता है। मंदिर के अंदर एक विशालकाय शिवलिंग स्थापित है, जिसे देखने के बाद सही लगने लगता है कि इस मंदिर का नाम बृहदेश्वर ही होना चाहिए था।
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मंदिर में नंदी की विशाल प्रतिमा है
13 मंजिला इस मंदिर को तंजौर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है, मंदिर की ऊंचाई 216 फुट (66 मीटर) है,और संभवत: यह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है। यहां स्थित नंदी की प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। यह 16 फुट लंबी और 13 फुट ऊंची है।
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अद्भुत, अविश्वसनीय शिव मंदिर, जिसका वैज्ञानिक भी नहीं जान सके रहस्य
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भारत में वैसे तो कई चमत्कारी व अद्भुत मंदिर हैं, लेकिन तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर कई लोगों की आस्था का केंद्र है, यहां सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, क्योंकि इसका आश्चर्य आजतक किसी को समझ नहीं आया कहा जाता है, की हम वैज्ञानिक काल में जी रहे हैं जहां असंभव को भी संभव किया जा सकता है। लेकिन इस मंदिर के चमत्कार के आगे वैज्ञनिकों नें भी अपने घुटने टेक दिए हैं तमिलनाडु के तंजौर में स्थित यह शिव मंदिर बृहदेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह प्रसिद्ध मंदिर 11वीं सदी के आरंभ में बनाया गया था, मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है,की इस विशाल मंदिर को हजारों टन ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है और इसे जोड़ने के लिए ना तो किसी ग्लू का इस्तेमाल किया गया है और ना ही सीमेंट का, फिर सोचने वाली बात है की इस मंदिर को आखिर किस चीज़ से जोड़ा गया है तो आपको बता दें की मंदिर को पजल्स सिस्टम से जोड़ा गया है।
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वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है यह मंदिर
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चोल राजा प्रथम ने 1010 ad में इस मंदिर का निर्माण कराया था। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था लेकिन तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर का नाम बदलकर बृहदेश्वर कर दिया। यह प्राचीन मंदिर चोल शासकों की कला का महान संगम है। बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का बेजोड़ नमूना है। इस भव्य मंदिर को सन1987 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया। भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर शैव धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल रहा है। यह मंदिर उनके शासनकाल की गरिमा का श्रेष्ठ उदाहरण है।
मंदिर की अद्भुत रहस्य
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इस मंदिर की सबसे ख़ास बात यह है कि इस मंदिर के गुम्बद की छाया जमीन पर पड़ती ही नहीं है, इस मंदिर के निर्माण कला की प्रमुख विशेषता यह है कि दोपहर को मंदिर के हर हिस्से की परछाई जमीन पर दिखती है लेकिन गुंबद की नहीं। दुनिया में पीसा की मीनार सहित कई ऊंची संरचनाएं टेढ़ी हो रही हैं, लेकिन यह मंदिर अभी तक सीधा बना हुआ है। लोगों की समझ से यह रहस्य आज भी परे है कि इस मंदिर में आखिर ऐसा क्या छुपा है?
मंदिर पर है 80 टन का कलश
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इस मंदिर के गुंबद को 80 टन के एक पत्थर से बनाया गया है, और उसके ऊपर एक स्वर्ण कलश रखा हुआ है। मंदिर का नाम उस समय सही प्रतीत होता है, जब कोई इस मंदिर के अंदर जाता है। मंदिर के अंदर एक विशालकाय शिवलिंग स्थापित है, जिसे देखने के बाद सही लगने लगता है कि इस मंदिर का नाम बृहदेश्वर ही होना चाहिए था।
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मंदिर में नंदी की विशाल प्रतिमा है
13 मंजिला इस मंदिर को तंजौर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है, मंदिर की ऊंचाई 216 फुट (66 मीटर) है,और संभवत: यह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है। यहां स्थित नंदी की प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। यह 16 फुट लंबी और 13 फुट ऊंची है।
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